Wednesday, June 17, 2020

डिप्रेशन है, एक घातक बिमारी

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डिप्रेशन
के शिकार किसी व्यक्ति की पहचान हम कैसे कर सकते हैं, अगर आपके आसपास कोई व्यक्ति अधिकतर समय दुखी रहता है, करीब-करीब हर दिन और हर क्षण वो दुखी, नाउम्मीद और निराशावादी दिखता है, अगर उसे लगता है कि उसके जीवन का कोई मूल्य नहीं रह गया हैl  MI BAND 3

उसके मन में कोई अपराध बोध है जिसका जिक्र वो बार-बार करता है तो ऐसा व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो सकता है इसके अलावा अपनी पसंदीदा गतिविधियों में मन नहीं लगता, किसी के साथ भी समय बिताने की इच्छा ना होना. किसी से बात करने का मन ना होना.

ठीक से ना सोना या जरूरत से ज्यादा नींद लेना भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैंl  

इसके अलावा अगर उसे मृत्यु या आत्महत्या के विचार आ रहे हैं तो आपको सावधान हो जाना चाहिए और फौरन किसी मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से बात करनी चाहिए बीमारी का पता चलने पर अधिकतर मामलों में साइको थेरेपी से दवाओं या फिर दोनों तरीकों से उपचार हो जाता है. और इसमें 2 से 4 हफ्ते ही लगते हैं. हालांकि कुछ मामलों में इलाज थोड़ा लंबा भी खिंच सकता है लेकिन सब्र रखने पर धीरे-धीरे इलाज का असर होने लगता है, हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लिया जाता हैl

जबकि भारत में हर 20 लोगों में एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अमेरिका और चीन के बाद भारत, डिप्रेशन से पीड़ित तीसरा बड़ा देश है. भारत में 20 करोड़ लोग हैंl 

जो किसी ना किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं. देश में 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में करीब 15 प्रतिशत ऐसे युवा हैं जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य की कोई ना कोई समस्या है विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये भी आंकड़ा है कि दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति अपने जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित होता है. दुनिया में 45 करोड़ लोग हैं जो इस वक्त ऐसी ही किसी मानसिक बीमारी से लड़ रहे हैं. सबसे खतरनाक बात ये है कि डिप्रेशन की वजह से आत्महत्या होती है और दुनिया में हर वर्ष करीब 8 लाख लोग इसी की वजह से खुद की जान ले लेते हैं, जो कि काफी चिंताजनक हैl

गौरव राजपुरोहित

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आत्महत्या समस्या का समाधान नही

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आत्महत्या का अपना एक विस्तृत मनोवैज्ञानिक पहलू है। कई लोग इस पर तर्क कर सकते हैं कि आत्महत्या करने वाले ने सही किया या ग़लत लेकिन इससे आत्महत्या करने वाले की आत्मा को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। 

वह जा चुका होता है लेकिन कोई और ऐसा प्रयास न करे, इसका जतन तो हमें करते रहना चाहिए क्योंकि ज़िंदगी से क़ीमती इस दुनिया में कुछ भी नहीं।आत्महत्या करना कायरता है या यह हिम्मत वालों का काम है?

इस पर भी कई कई दिनों तक बहस की जा सकती है। कायरता कहने वाले कहेंगे कि उसे अपनी ज़िंदगी से लड़ना चाहिए था, उसे अपनी समस्याओं का समाधान खोजना चाहिए था, उसे लोगों की मदद लेना चाहिए थी... कुछ भी करके उसे अपना जीवन बाक़ी रखना चाहिए था। जो इसके विरोध में होंगे वे कहेंगे कि कायरता कैसी? MI BAND 3

कोई व्यक्ति अपनी इकलौती जान दे दे, इसके लिए बहुत हिम्मत की ज़रूरत होती है। यह काम कायरों के बस का नहीं। इस अंतहीन बहस में कौन जीतेगा यह तो हम नहीं जानते। यह तो ठीक ठीक आत्महत्या करने वाले ही बता सकते हैं कि उन्होंने जान बहादुरी के कारण दी थी या फिर वह डरते हुए मरा था आत्महत्या करने से पहले जो लोग सुसाइड नोट लिखते हैं, उसका भी अपना मनोविज्ञान है। कई बार यह किसी से बदला लेने के लिए होता है तो कई बार यह किसी को माफ़ करने के लिए होता है।
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लेकिन सुसाइड नोट अपनों को हमेशा पीड़ा देता है। वे जब भी इसे पढ़ते हैं, याद करते हैं तो उन्हें पीड़ा होती है। मरने वाला उन्हें ज़िंदगी भर रुलाने की वजह देकर जाता है सुसाइड करने वाले शायद यह सोचते हैं कि उनकी आत्मा या रूह यह नोट पढ़ते हुए लोगों को देखेगी। 

अर्थव्यवस्था का एक नियम है कि किसी वस्तु को बाज़ार से हटा लेने पर उसकी क़ीमत बढ़ जाती है। लोग अपने बारे में भी ऐसा सोचते हैं। ख़ुद को लोगों से अलग करने का सबसे बड़ा कदम आत्महत्या करना है। लेकिन, आत्महत्या करने वाला यह भूल जाता है कि बढ़ी हुई कीमत का महत्त्व तब है, जबकि आप फिर से उपलब्ध हों और दुर्भाग्य से आत्महत्या करने वाला अपनी हत्या सदा के लिए कर चुका होता है तो ऐसे में उसका फिर से लोगों के बीच आना नामुमकिन है।

कई लोग जब आत्महत्या करते हैं तो उससे पहले उनके ज़हन में फिल्मों वाला एक सीन आता है जिसमें कि घरवाले और दोस्त उसकी लाश के पास बैठकर रो रहे हैं, बिलख रहे हैं और यह सब उसकी आत्मा देख रही है। 


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लेकिन, दुर्भाग्य से यह सब सिर्फ फिल्मी बातें हैं। आपकी रूह को ऐसा कुछ भी पता नहीं चलता। वह तो चली जाती है किसी और दुनिया में और यदि आप यह विश्वास रखते हैं कि वह दूसरी दुनिया वह है, जो हमारे धर्मों ने बताई है तो याद रखिए कि धर्मों के कानूनों के अनुसार आपकी रूह को वहां भी सुकून नहीं मिलेगा। और यदि आप नास्तिक हैं तो विज्ञान तो रूह और पुनर्जन्म को मानता ही नहीं है। 

ऐसे में आपके हाथ से सब कुछ चला गया आत्महत्या के बारे में सभी विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति कभी भी अचानक आत्महत्या नहीं करता। वह कुछ निशानियां लोगों के सामने प्रकट ज़रूर करता है। निराश और उदास चेहरा, परेशान और रोती हुई आंखें, गुमसुम अकेला रहने का दिल चाहना, किसी बात में दिल ना लगना, वह काम जिसमें सब खुश होते हैं उसमें भी उसका 

गुमसुम बैठे रहना, जब सब किसी बात पर ठहाके लगा रहे हो तो उसका बस लोगों का दिल रखने के लिए थोड़ा सा हँस देना... अपनों में और खुद में यह निशानियां देखते रहा करें दुनिया में आत्महत्या बहुत से लोग करते हैं लेकिन, सबसे ज़्यादा वे लोग होते हैं, जो भीड़ में ख़ुद को अकेला महसूस करते हैं। 

उन्हें सब तरफ लोग तो दिखाई देते हैं लेकिन कोई अपना नहीं दिखता या वे अपनों को अपना मानने के लिए तैयार ही नहीं होते। जब दुनिया बेगानी लगती है तो फिर उन्हें मृत्यु अपनी लगने लगती है... जो कि उनका भ्रम होता हैl।   सुशांत सिंह राजपूत

गौरव राजपुरोहित

Thursday, June 11, 2020

मुंबई कैसे बन गया, भारत का वुहान



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देश में कोरोना संक्रमण से जुड़ी एक अच्छी और एक बुरी खबर है- अच्छी खबर ये है कि देश में पहली बार कोरोना से स्वस्थ हुए मरीजों की संख्या, एक्टिव मरीजों से ज्यादा हो गई है, देश में कोरोना संक्रमण के मामले 2 लाख 77 हजार से ज्यादा हो चुके हैं, अब तक भारत में सात हजार सात सौ पैतालीस लोग इस संक्रमण से जान गंवा चुके हैं. लेकिन राहत की बात ये है कि देश में कोरोना के एक लाख पैतीस हजार से ज्यादा मरीज, पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं.

जबकि एक्टिव मरीजों की संख्या एक लाख तैतीस हजार से ज्यादा हैं, अर्थात जितने मरीज इस वक्त इलाज करवा रहे हैं, उससे ज्यादा मरीज ठीक होकर घर लौट गए हैं, बुरी खबर ये है, कि मुंबई में कोरोना को लेकर हालात अच्छे नहीं है. वहां अब संक्रमण के मामले चीन के उस वुहान शहर से ज्यादा हो चुके हैं, जहां से ये वायरस दुनिया भर में फैला था. मुंबई में कोरोना संक्रमण के 51 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैंl 


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जबकि वुहान में संक्रमण के कुल 50 हजार 340 मामले थे. मुंबई में एक अप्रैल तक कोरोना के सिर्फ 198 केस थे, लेकिन 30 अप्रैल को ये संख्या 6 हजार 644 हो गई. 

इसके बाद 15 मई को ये मामले 16 हजार के पार हो गए. अगले 16 दिन में ये संख्या दोगुनी होकर करीब 37 हजार हो गई और 9 जून को मुंबई ने पचास हजार का आंकड़ा पार कर लियाl

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मुंबई में संक्रमण के मामले कितनी तेज रफ्तार से बढ़े हैं. इस तरह मुंबई ने, वुहान को पीछे छोड़ दिया है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर मुंबई में, कोरोना संक्रमण के मामले, वुहान से ज्यादा कैसे हो गए वुहान की आबादी करीब एक करोड़ दस लाख है जबकि मुंबई की आबादी दो करोड़ के आस-पास हैl

लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब से वुहान, मुंबई से करीब 14 गुना बड़ा है. वुहान का क्षेत्रफल करीब साढ़े 8 हजार वर्ग किलोमीटर है. मुंबई का क्षेत्रफल करीब 603 वर्ग किलोमीटर है. वुहान में प्रति वर्ग किलोमीटर इलाके में औसतन 1152 लोग रहते हैं. जबकि मुंबई में ये संख्या 35 हजार के करीब है, वुहान में कोरोना संक्रमण से मौतों की संख्या 3869 बताई गई थी, 

वहां मरने वालों का प्रतिशत 7.77 प्रतिशत था. जिसके मुकाबले मुंबई में हालात बेहतर हैं जहां कोरोना से अबतक करीब 1760 लोगों की मौत हुई हैl

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